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Friday, July 26, 2019

ब्राह्मण कौन हे व असली ब्राह्मण कैसे होते है ।। AIBA ।।

ब्राह्मण कौन  हे व असली ब्राह्मण कैसे होते है 
पूर्वकाल में ब्राह्मण होने के लिए शिक्षा, दीक्षा और कठिन तप करना होता था। इसके बाद ही उसे ब्राह्मण ने कहा था। गुरुकुल की अब वह परंपरा नहीं रही। जिन लोगों ने ब्राह्मणत्व को अपने प्रयासों से हासिल किया था उनके कुल में जन्मे लोग भी खुद को ब्राह्मण समझने लगे थे।
Brahman Kese Hote hai
Brahman Kon Hai
ऋषि-मुनियों की वे संतानें खुद को ब्राह्मण मानती हैं, जबकि उन्होंने न तो शिक्षा ली, न दीक्षा और न ही उन्होंने कठिन तप किया। वे जनेऊ का भी अपमान करते देखे गए हैं।
शराब पीकर, मांस खाकर और असत्य वचन बोलकर भी खुद कोई ब्राह्मण नहीं कह सकते। धर्म के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखना, धर्म के बारे में मनमानी बाते बोलकर या धर्मविरोधी वचन बोलकर खुद को ब्राह्मण कहने वाले ब्राह्मण नहीं हो सकते। ब्राह्मण कौन होता है इस संबंध में वेद, पुराण, स्मृति ग्रंथों में विस्तार से वर्णन मिलता है। हमने यहां ब्राह्मणों के लिए कुछ जानकारी जुटाई है।

ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या :
जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर किसी अन्य को नहीं पूजता वह ब्राह्मण। ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण कहलाता है। कहते हैं कि जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका को है, वह ब्राह्मण नहीं, ओरछा है। जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका और है वह ब्राह्मण नहीं, ज्योतिषी है और जो कथा बांचता है वह ब्राह्मण नहीं कथा वाचक है। इस तरह वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कुछ भी कर्म करता है वह ब्राह्मण नहीं है। जिसके मुख से ब्रह्म शब्द का उच्चारण नहीं होता है वह ब्राह्मण नहीं है।

न जटाहि न गोत्तेहि न जच्चा होति ब्राह्मणो।
यम्हि सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो॥
अर्थात: भगवान बुद्ध कहते हैं कि ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है। कमल के टुकड़ों पर जल और आरे की नोक पर सरसों की तरह जो विषय-भोगों में लिप्त नहीं होता, मैं उसे ही ब्राह्मण कहता हूं।

तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण य थावरे।
जो न हिंसइ तिविहेण तं वयं बूम माहणं॥
अर्थात: महावीर स्वामी कहते हैं कि जो इस बात को जानता है कि कौन प्राणी त्रस है, कौन स्थावर है। और मन, वचन और काया से किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता, उसी को हम ब्राह्मण कहते हैं।

न वि मुंडिएण समणो न ओंकारेण बंभणो।
न मुणी रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो॥
अर्थात: महावीर स्वामी कहते हैं कि सिर मुंडा लेने से ही कोई श्रमण नहीं बन जाता है। ओंकार का जप कर लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता है। केवल जंगल में जाकर बस जाने से ही कोई मुनि नहीं बन जाता। वल्कल वस्त्र पहनने लेने से ही कोई तपस्वी नहीं बन जाता है।

शनकैस्तु क्रियालोपदिनाः क्षत्रिय जातयः।
वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणा दर्शनेन च॥
पौण्ड्रकाशचौण्ड्रद्रविडाः काम्बोजाः भवनाः शकाः ।
पारदाः पहल्वाश्चीनाः किरताः दरदाः खशाः॥
अर्थात: ब्राह्मणत्व की प्राप्ति को प्राप्त न होने के कारण उस क्रिया का लोप होने से पोण्ड्र, चौण्ड्र, द्रविड़ काम्बोज, भवन, शक, पारद, पहलवा, चीनी किरात, दरद व खश के सभी क्षत्रिय जाटों धीरे-धीरे शूद्रत्व को प्राप्त हो गए हैं।

असली ब्राह्मण कैसे होते है 
जाति के आधार पर हजारों वर्ष की परंपरा और कालक्रम में ब्राह्मणों के हजारों प्रकार हो गए हैं। उत्तर भारतीय ब्राह्मणों के प्रकार अलग तो दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों के अलग प्रकार। उत्तर भारत में जहाँ सारस्वत, सरुपति, गुर्जर गौड़, सनाठ्य, औदिच्य, पराशर आदि ब्राह्मण मिल जायेंगे तो दक्षिण भारत में ब्राह्मणों के तीन संप्रदाय हैं- स्मर्त प्रादेय, श्रीवैष्णव संप्रदाय और माधव संप्रदाय। उनकी हजारों उप संप्रदाय हैं।

पुराणों के अनुसार पहले विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा हुए, ब्रह्मा का ब्रह्मर्षिनाम करके एक पुत्र था। उस पुत्र के वंश में पारब्रह्म नामक पुत्र हुआ, उससे कृपाचार्य हुए, कृपाचार्य के दो पुत्र हुए, उनका छोटा पुत्र शक्ति था। शक्ति के पांच पुत्र हुए। उसमें से प्रथम पुत्र पाराशर से पारीक समाज बना, दूसरे पुत्र सारस्वत के सारस्वत समाज, तीसरे ग्वाला ऋषि से गौड़ समाज, चौथे पुत्र गौतम से गुर्जर गौड़ समाज, पांचवें पुत्र श्रृंगी से उनके वंश शिखवाल समाज, छठे पुत्र दाधीच से दायमा या दाधीच समाज बना।..
इस तरह ‍पुराणों में हजारों प्रकार मिल जाएंगे।


इसके अलावा माना जाता है कि सप्तऋषियों की संतानें हैं ब्राह्मण। जैन धर्म के ग्रंथों को पढ़ें तो वहां ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन अलग-अलग मिल जाएगा। बौद्धों के धर्मग्रंथ पढ़ें तो वहां अलग वर्णन है। लेकिन सबसे उत्तम तो वेद और स्मृतियों में ही मिलता है।

कोई भी बन सकता है ब्राह्मण :
ब्राह्मण होने का अधिकार सभी को है चाहे वह किसी भी जाति, प्रांत या संप्रदाय से हो। हम ऐसे हजारों उदाहरण बता सकते हैं जबकि क्षत्रिय समाज से कई लोग ब्राह्मण बने और ब्राह्मण समाज से कई लोग राष्ट्रवादी हैं। ऐसे कई वैश्य है जिन्होंने पूर्वकाल में क्षत्रियत्व धारण किया और ऐसे भी कई दलित है जिन्होंने ब्राह्मणत्व धारण करते समाज को दिशा दी। हां यह बात सही है कि ब्राह्मण होने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है। ज्ञान, साहस, संयम, विनम्रता और संस्कार को महत्व देना होता है।

स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है:-
केवल, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचेत, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। 8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण, त्रिशुक्ल 'कहलाते हैं।) ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है।

1. मात्र: ऐसे ब्राह्मण जो जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन वे कर्म से ब्राह्मण नहीं हैं उन्हें केवल कहा गया है।] ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता है। बहुत से ब्राह्मण ब्राह्मणोत्चित उपनयन संस्कार और वैदिक कर्मों से दूर हैं, तो उसी तरह हैं। उनमें से कुछ तो यह भी नहीं हैं।

2. ब्राह्मण: ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।

3. श्रोत्रिय: स्मृति के अनुसार जो कोई भी मनुष्य वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छंदों सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित 6 कर्मों में सलंग्न रहता है, वह ो श्रोत्रिय ’कहलाता है।

4. अनाचार: कोई भी व्यक्ति वेदों और वेदांगों का तत्वज्ञ, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय छात्रों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वह चान अनुचेत ’माना गया है।

5. भ्रूण: अनुचान के सभी गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, ऐसे इंद्रिय संयम व्यक्ति को भ्रूण कहा गया है।

6. ऋषिकल्प: जो कोई भी व्यक्ति सभी वेदों, स्मृतियों और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मन और इंदियों को वश में करके आश्रम में सदा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निवास करता है उसे ऋषिकल्प कहा जाता है।

7. ऋषि: ऐसे व्यक्ति तो सम्यक आहार, विहार आदि करते हुए ब्रह्मचारी रहकर संशय और संदेह से परे हैं और जिसके श्राप और अनुग्रह फलित होने लगे हैं कि सत्यप्रतिज्ञों और समर्थ व्यक्ति को ऋषि ने कहा है।

8. मुनि: जो व्यक्ति निवृत्ति मार्ग में स्थित है, संपूर्ण तत्वों का ज्ञाता, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय और अनुक्रम ऐसा ब्राह्मण को नि मुनि 'कहते हैं।


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आल इंडिया ब्राह्मण एसोसिएशन (AIBA)
यशवंत शर्मा  ( इंदौर)
+918770294371
(AIBA) All india Brahmin Association












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