सावन का महीना महादेव को क्यों प्रिय है जानिए
इस बार सावन का महीना 17 जुलाई से शुरू हो गया है। सावन शिवरात्रि इस वर्ष 30 जुलाई को मनाई जाएगी। इस बार श्रवण मास में चार सोमवार पड़ रहे हैं, जो कि अत्यंत शुभ माने जाते हैं। 22 जुलाई, 29 जुलाई, 5 अगस्त और 12 अगस्त को सावन के सोमवार के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाएगी।
सावन के महीने में ही भाई बहन का प्रसिद्ध रक्षा बंधन और नागपूजन के लिए समर्पित नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है।
भोलेनाथ को सावन का महीना बेहद प्रिय है। इस महीने में भगवान से पूछा गया मुर मुराद पूरी तरह से होता है। विशेष रूप से छोटे बच्चों और कुमारी युवतियों को इस महीने में जरुर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि भगवान आशुतोष स्त्रियों और बच्चों पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।
दरअसल सावन के महीने में ही माता पार्वती की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इसीलिए सावन का महीना शिव और पार्वती दोनों को बेहद प्रिय है। इसी महीने में शिव और शक्ति के मिलन की आधारशिला रखी गई थी।
यही कारण है कि सावन के महीने में भगवान शिव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसके अलावा सनातन धर्म की प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक सावन के महीने में व्रत रखने वाली लड़कियों को भगवान शिव के आशीर्वाद से मनचाहा जीवनसाथी मिलती है। इसके अलावा इस महीने में भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से भक्तजनों को पद, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य जैसे भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
सावन में कावड़ यात्री करते हे गंगाजल से शिव अभिषेक :
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा की शुरुआत होती है। इसमें दूर दूर से शिवभक्त गंगाजल लाकर भगवान शिव के विग्रह या शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। कहा जाता है कि ऐसे करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।
यही कारण है कि सावन के महीने में लाखों की संख्या में कांवड़िए गंगाजल लाकर भगवान शिव पर अर्पित करते हैं।
सावन केमहीने में क्यों किया जाता हे शिव अभिषेक
सावन माह के साथ भगवान शिव और सृष्टि से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कथा भी है। जो कि यह बताती है कि कैसे संसार की रक्षा के लिए भगवान शिव ने वह कर दिया था जिसे कोई और नहीं कर सकता था।
प्राचीन ग्रंथों में बताई गई कथाओं के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया। उनकी लक्ष्य समुद्र की निधियों में शामिल लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभ मणि, ऐरावत हाथी, पारिजात का वृक्ष, उच्चैःश्रवा घोड़ा, कामधेनु गाय, रम्भा और उर्वशी जैसी अप्सराएं, औषधियाँ और वैद्यराज धनवन्तरि, चंद्रमा, पंचवृक्ष, वरुणनिधान और लक्ष्मण को प्राप्त करती हैं।
लेकिन जैसे ही समुद्र मंथन शुरू हुआ, तो पहले भी बगल में कालकूट विष निकला। जिसका ज्वाला से पूरा विश्व तड़का लगा। देवता, दानव, मनुष्य, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, पशु, पक्षी सहित सभी प्राणी व्याकुल हो गए।
शरण मंथन कर रहे देवों और दानवों के प्राणों पर भीषण संकट आ गया। क्योंकि उन्होंने विभूतियों को हासिल करने का सपना तो देख लिया था। लेकिन विष का उपाय तलाश नहीं किया गया था।
हारकर पूरी सृष्टि के प्राणियों ने देवाधिदेव महादेव की शरण ली। जिन्होंने संसार की रक्षा के लिए भयानक कालकूट विष को अपने अंदर समाहित कर लिया। उन्होंने अपना मुंह खोलाकर पूरा विष पी लिया। इस दौरान उनकी पत्नी माता पार्वती ने उनका गला पकड़कर विष को नीचे उतारने से रोका।
क्योंकि भगवान शिव के शरीर में पूरी सृष्टि समाहित थी। अगर विष नीचे उतरता को संपूर्ण सृष्टि का विनाश हो जाता है। भगवान ने माता पार्वती और योगबल के विष को अपने गले में केन्द्रित कर लिया। जिसकी वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया। इसी कारण के भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ भी पड़ता है।
लेकिन इस विष की ज्वाला से भगवान बेचैन हो गए। उनकी हालत को देखते हुए भक्तों और भगवान ने उन शीतल जल की वर्षा की वर्षा की। इसलिए सावन के महीने में इंद्रदेव रिमझिम फुहारें बरसाकर भगवान शिव के विष की ज्वाला को कम करते हैं। वहीं मनुष्य अपनी क्षमता के अनुसार भोलेनाथ पर जल अर्पित करके उनकी विष के दाह को कम करने की कोशिश करते हैं।
सावन के इसी महीने में मनाई जाती हे नागपंचमी :
भगवान शिव और सर्पों का संबंध बेहद पुराना है। इस संबंध की कथा भी भगवान शिव के विषपान से ही जुड़ी हुई है। दरअसल भोलेनाथ ने समुद्र मंथन से निकले जिस कालकूट विष का पान किया था। इसमें से कुछ बूंदे नीचे गिर गई। तब भगवान शिव के आदेश से उनके शरीर पर मौजूद सर्प, बिच्छू और दूसरे कीड़े मकोड़ों ने विष की इस अल्प मात्रा को ग्रहण किया।
जिसकी वजह से इन सभी जीवों में आज भी विष की मात्रा पाई जाती है।
भगवती माता तारा ने भगवन शिव को दुग्धपान करा के उनके विषदाह शमन किया :
सावन के महीने से ही भगवती तारा की कथा भी जुड़ी हुई है। वैसे तो भगवान शिव को अजन्मा और अविनाशी माना जाता है। उनके माता-पिता या पिता नहीं हैं। लेकिन आदिशक्ति के एक स्वरुप तारा यानी तारिणी ने विष के प्रभाव से व्याकुल हुए भगवान शिव को मातृरुप में आकर अपना अमृतमय दूध पिलाया था। जिसकी वजह से उनके विष का दाह पूरी तरह खत्म हो गया था।
भगवती तारा को दश महाविद्याओं में सबसे पहले माना जाता है। उनका स्थान महाकाली से भी पहले है। उन्हें शिव की माता के रूप की पूजा मिलती है।
मां तारा का प्रसिद्ध मंदिर पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक श्मशान में स्थित है।
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इस बार सावन का महीना 17 जुलाई से शुरू हो गया है। सावन शिवरात्रि इस वर्ष 30 जुलाई को मनाई जाएगी। इस बार श्रवण मास में चार सोमवार पड़ रहे हैं, जो कि अत्यंत शुभ माने जाते हैं। 22 जुलाई, 29 जुलाई, 5 अगस्त और 12 अगस्त को सावन के सोमवार के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाएगी।
sawan ka mahina mahadev ko priya |
भोलेनाथ को सावन का महीना बेहद प्रिय है। इस महीने में भगवान से पूछा गया मुर मुराद पूरी तरह से होता है। विशेष रूप से छोटे बच्चों और कुमारी युवतियों को इस महीने में जरुर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि भगवान आशुतोष स्त्रियों और बच्चों पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।
दरअसल सावन के महीने में ही माता पार्वती की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इसीलिए सावन का महीना शिव और पार्वती दोनों को बेहद प्रिय है। इसी महीने में शिव और शक्ति के मिलन की आधारशिला रखी गई थी।
यही कारण है कि सावन के महीने में भगवान शिव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसके अलावा सनातन धर्म की प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक सावन के महीने में व्रत रखने वाली लड़कियों को भगवान शिव के आशीर्वाद से मनचाहा जीवनसाथी मिलती है। इसके अलावा इस महीने में भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से भक्तजनों को पद, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य जैसे भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
सावन में कावड़ यात्री करते हे गंगाजल से शिव अभिषेक :
सावन के महीने में कांवड़ यात्रा की शुरुआत होती है। इसमें दूर दूर से शिवभक्त गंगाजल लाकर भगवान शिव के विग्रह या शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। कहा जाता है कि ऐसे करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।
यही कारण है कि सावन के महीने में लाखों की संख्या में कांवड़िए गंगाजल लाकर भगवान शिव पर अर्पित करते हैं।
kavad yatra |
सावन माह के साथ भगवान शिव और सृष्टि से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कथा भी है। जो कि यह बताती है कि कैसे संसार की रक्षा के लिए भगवान शिव ने वह कर दिया था जिसे कोई और नहीं कर सकता था।
प्राचीन ग्रंथों में बताई गई कथाओं के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया। उनकी लक्ष्य समुद्र की निधियों में शामिल लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभ मणि, ऐरावत हाथी, पारिजात का वृक्ष, उच्चैःश्रवा घोड़ा, कामधेनु गाय, रम्भा और उर्वशी जैसी अप्सराएं, औषधियाँ और वैद्यराज धनवन्तरि, चंद्रमा, पंचवृक्ष, वरुणनिधान और लक्ष्मण को प्राप्त करती हैं।
लेकिन जैसे ही समुद्र मंथन शुरू हुआ, तो पहले भी बगल में कालकूट विष निकला। जिसका ज्वाला से पूरा विश्व तड़का लगा। देवता, दानव, मनुष्य, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, पशु, पक्षी सहित सभी प्राणी व्याकुल हो गए।
शरण मंथन कर रहे देवों और दानवों के प्राणों पर भीषण संकट आ गया। क्योंकि उन्होंने विभूतियों को हासिल करने का सपना तो देख लिया था। लेकिन विष का उपाय तलाश नहीं किया गया था।
हारकर पूरी सृष्टि के प्राणियों ने देवाधिदेव महादेव की शरण ली। जिन्होंने संसार की रक्षा के लिए भयानक कालकूट विष को अपने अंदर समाहित कर लिया। उन्होंने अपना मुंह खोलाकर पूरा विष पी लिया। इस दौरान उनकी पत्नी माता पार्वती ने उनका गला पकड़कर विष को नीचे उतारने से रोका।
क्योंकि भगवान शिव के शरीर में पूरी सृष्टि समाहित थी। अगर विष नीचे उतरता को संपूर्ण सृष्टि का विनाश हो जाता है। भगवान ने माता पार्वती और योगबल के विष को अपने गले में केन्द्रित कर लिया। जिसकी वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया। इसी कारण के भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ भी पड़ता है।
लेकिन इस विष की ज्वाला से भगवान बेचैन हो गए। उनकी हालत को देखते हुए भक्तों और भगवान ने उन शीतल जल की वर्षा की वर्षा की। इसलिए सावन के महीने में इंद्रदेव रिमझिम फुहारें बरसाकर भगवान शिव के विष की ज्वाला को कम करते हैं। वहीं मनुष्य अपनी क्षमता के अनुसार भोलेनाथ पर जल अर्पित करके उनकी विष के दाह को कम करने की कोशिश करते हैं।
सावन के इसी महीने में मनाई जाती हे नागपंचमी :
भगवान शिव और सर्पों का संबंध बेहद पुराना है। इस संबंध की कथा भी भगवान शिव के विषपान से ही जुड़ी हुई है। दरअसल भोलेनाथ ने समुद्र मंथन से निकले जिस कालकूट विष का पान किया था। इसमें से कुछ बूंदे नीचे गिर गई। तब भगवान शिव के आदेश से उनके शरीर पर मौजूद सर्प, बिच्छू और दूसरे कीड़े मकोड़ों ने विष की इस अल्प मात्रा को ग्रहण किया।
जिसकी वजह से इन सभी जीवों में आज भी विष की मात्रा पाई जाती है।
भगवती माता तारा ने भगवन शिव को दुग्धपान करा के उनके विषदाह शमन किया :
सावन के महीने से ही भगवती तारा की कथा भी जुड़ी हुई है। वैसे तो भगवान शिव को अजन्मा और अविनाशी माना जाता है। उनके माता-पिता या पिता नहीं हैं। लेकिन आदिशक्ति के एक स्वरुप तारा यानी तारिणी ने विष के प्रभाव से व्याकुल हुए भगवान शिव को मातृरुप में आकर अपना अमृतमय दूध पिलाया था। जिसकी वजह से उनके विष का दाह पूरी तरह खत्म हो गया था।
भगवती तारा को दश महाविद्याओं में सबसे पहले माना जाता है। उनका स्थान महाकाली से भी पहले है। उन्हें शिव की माता के रूप की पूजा मिलती है।
Maata Taara |
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